मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

तुम** मेरी हो....**ओह प्रियतमा तुम मेरी हो...**तुम्हे पाने को आत्मा कुच्ह यु है तरसी **सावन कि पहली बुंद को तरसी ज्यो धरती **प्यासे मेरे जीवन में, बंकर आयी नदी तुम एक गहरी हो **ओह प्रियतमा तुम मेरी हो..**तेरे होठो कि मुस्कानो से, स्वप्न नये खिळते है **तेरे नयनो कि मादकता से, सो मैखाने चालते है **एक समा कि चाहत मै, सो परवाने जळते है,**तू मिल भी जा मुज्मे, जैसे दो प्यासे प्रेमी मिळते है,**तेरी प्यारी हंसी, मेरी सांसो कि प्रहरी है,**ओह प्रियतमा तुम मेरी हो..**तेरी चाहतो के लिये, प्रेम दीप मैने जलाये **एक आरसे से बैठ हून, मै बाहे फेलाये**तुम आ भी जो मेरे आशियन मै, शाम जाब सिंदुरी हो,**ओह प्रियतमा तुम मेरी हो..**कोरे मेरे इस मन मै, सपनो को मैने संजोय है,**तेरी चाहत को पाने को, दिल बहुत रोया है,**तुम बंकर शीतल चांदणी, आओ मेरे जीवन मै****स्वर्णिम स्वप्नो कि रात जब ये अंधेरी हो,**ओह प्रियतमा तुम मेरी हो..*

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