शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

गंगा जैसा निर्मल पावन हे ये तेरा मेरा प्यार



गंगा जैसा निर्मल पावन हे ये तेरा मेरा प्यार
बिन देखे तुझको चाहा, बिन मांगे तुझको पाया
बिन जाने तुझको जाना, बिन छुए तुने छुया मेरी सांसो का संसार
गंगा जैसा निर्मल पावन हे ये तेरा मेरा प्यार

आभासों से मैंने तेरा चित्र बनाया, हृदय में उसको बसाया
तेरी पावन मुस्कानों ने, मुझको जीवन का मतलब समझाया
मौन की मैंने व्याख्या की, नहीं था ये शब्दों का व्यापार
गंगा जैसा निर्मल पावन हे ये तेरा मेरा प्यार

तेरी पायल की झनकार से झंकृत होते वीणा के तार
तेरे अधरों की लाली से सिंदूरी होता साँझ का विहार
तेरे नयनो के काजल से गहरा जाता निशा की द्वार
दर्पण भी शर्मा जाता देख के तेरा ये सोलह श्रंगार
गंगा जैसा निर्मल पावन हे ये तेरा मेरा प्यार

1 टिप्पणी:

  1. मौन की मैंने व्याख्या की, नहीं था ये शब्दों का व्यापार
    गंगा जैसा निर्मल पावन हे ये तेरा मेरा प्यार

    panwar sahab, ek behatareen abhiyakti..

    iski taareef me shab bolne ke liye mere paas waakai shab nahi hai........

    yahi nishabd prem hai....yahi niswarth prem hai....aise prem me hi rab basta hai.....

    shringaar, prem, tyag ka ek anutha mishran.......puraskrit hone yogya rachna......

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